Friday, August 26, 2005

बिजली और मिठाई की जंग से आजादी... कब?

एक हमारे मित्र हैं "सैनी साहब", अपने देश के दूसरे सबसे अच्छे प्रदेश, यू० पी० के बाशिन्दे हैं हमारी तरह। शहर धामपुर, जिले बिजनौर की एक तहसील, चीनी मिल, खांडसारी और अब सैनी साहब की वजह से मशहूर। उमर - पचीस बसंत देख चुके हैं और अपने हाथों की कला से ना जाने कितने लोगों के बसंत को आनन्दित बना चुके हैं। शादियों में ना जाने कितनों का मुँह मीठा करवा चुके हैं। अरे भाई आसानी से सोचा जा सकता है कि मिठाई बनाने का काम करते हैं सैनी साहब, और अगर एक शब्द के प्रयोग की चुनौती दी जाये तो बिना किसी आपॅसन के ताला लगा सकते हैं कि हलवाई हैं हमारे सैनी साहब। लोगों के गले को मीठा बनाये रखते हैं चाहे कुछ भी हो जाये। और हर किसी के मुँह से आप इनकी तारीफ सुन सकते हैं।

हर किसी की तरह अपने बेचारे कई महीनों से परेशान थे, कोई
मेड इन चाइना मशीन आ गयी, और मिठाई बनाने वालों की मिठाई के साथ साथ असली बरक वाली चांदी भी होने लगी। बिजली नहीं थी, फिर भी बाकी हलवाई बन्धु किसी तरह से मैनेज कर लेते थे। सैनी साहब दुखी, हमारे एक पुराने दोस्त जो धामपुर में रहते है, के पास गये और दुख भरी पाती कम्प्यूटर से भेज दी। हमको भी बङा दुख हुआ पर हम क्या कर सकते थे। सबसे ज्यादा बुरा उनको इस बात का लगा कि हमारे घर भी हब उनके यहाँ से मिठाई नही जाती। लिखा था, "अरे भैया जब आप मथुरा वाले होकर भी हमसे नहीं खरीदते तो और कौन?"। हमने घरवालों को समझा दिया। पर उनको भी कहा कि वो भी मशीन वाली मिठाई बनाया करें, आखिर आउट्सोर्सिंग का ज़माना है। हमने लिखा, "वैसे तो कहा जाता है और इतिहास भी गवाह है कि अपने अधिकतर महापुरूषों ने मौहल्ले की सङक की रोशनी में बैठकर पढाई की। पर भैया अब देश आजाद हो चुका है, सो बिजली ही जीवन है"।

पाठकों, बचपन से एक ख्याल दिल में आता था कि क्यों ना बङा बनने का शार्टकट निकाला जाये और एक सेकेन्ड में ही बङा आदमी बना जाये (असली महापुरूषों से क्षमा चाहता हूँ)। वैसे तो देश की सरकार वो जरूर करती है जो हम न चाहे पर हमारी ये छोटी सी ख्वाहिश पूरी होने में हमारी सरकार ही हमारी मदद करती है, सो महान बनने का आसान इंतेजाम।

वापस सैनी साहब पर, वो बोले कि "भैय्या बिजली आती ही नहीं है, और जनरेटर के पैसे कहाँ से लाये?" कम्प्यूटर वाली डाक से समझाने की बङी कोशिश की पर वो और दुखी रहने लगे। और कुछ दिन बात ही नहीं हुई। फिर सुना कि वो अपने यू० पी० की सियासत के केन्द्र लखनऊ चले गये
अपने मौसा जी के पास, हलवाई गिरी का और ज्यादा अनुभव लेने, पर धामपुर आते रहते और बिजली को कोसते रहते जिसका हाल लखनऊ में भी कोई अच्छा नहीं था। पर, बिना कनैक्शन की बिजली थी तो उनके मौसा जी को कोई दिक्कत नहीं थी। ऐसे ही लखनऊ और धामपुर के बीच हलवाईगिरी के गुर सीखते समय कट रहा था उनका। पर बिजली के कारण दुखी बहुत थे सैनी साहब।

कल अचानक
अखबार पढा तो पहले दुख से और फिर गर्व से सीना चोङा हो गया। आखिर बारहवी तक वहाँ ही रहे हैं हम, अपना ही शहर है धामपुर। सारे जहाँ के अन्तरजालों पर छा गया हमारा शहर केवल सैनी जी के कारण।

सबसे ज्यादा दुख तो इस बात का हुआ कि सैनी जी चढे भी तो ४० मीटर ऊँचे मोबाइल की एक कंपनी के खंबे पर। हम कह रहे थे कि आजादी के दिन फोन क्यों नहीं लग रहा, हमको क्या पता था कि हमारे सैनी साहब विराजे हुये हैं वहाँ तो। क्या स्वागत हुआ उनका, घर से पता चला, काश हम भी वहाँ होते तो हम भी एक मेड इस चाइना माला पहना दिये होते इनको। सैनी साहब के कुछ शब्द :-

"अगर आपको खुद पर भरोसा है तो आप कुछ भी कर सकते हैं। मैं यह बताना चाहता था कि आप आदमी भी कोई चीज है।"


"हम गरीबों के पास इज्जत और बिजली होना बहुत जरूरी है।"


"ये मेरी लाइट् और मेरी जिन्दगी की जंग है।"


"ऊपर से धामपुर एकदम जन्नत लग रहा था। इतना सुन्दर मुझे मेरा शहर कभी नहीं लगा। "

जियो सैनी भैय्या, सुनने में आया है कि मुकदमा चल रहा है जनाब पर और बिजली जस की जस या कहें तो उससे भी बुरा हाल। उम्मीद है कोई और मोबाइल कम्पनी आयेगी और ४० मीटर से भी ऊँचा खंबा बनवायेगी। जनता को उम्मीद है मिठाई की मिठहास से खुश रहने वाले लोग बिजली से फिर जंग छेङेंगे, फिर कोई सैनी साहब आयेंगे और इस बार कम से कम एक हफ्ते के लिये बिजली और मिठाई की जंग से मुक्ति दिलवायेंगे।