ये छलक छलक - वो ढलक ढलक
फिर बाजे घुंघरू ढोल बङे
ये छलक छलक -वो ढमक ढमक
सब निकले हैं पी पीके घङे
ये लपक लपक - वो धुमक धुमक
छम छम नाचे परियों की धुनें
ये धिरक धिरक - वो मटक मटक
ये छलक छलक - वो ढलक ढलक
ये छलक छलक - वो छमक छमक
ये लपक लपक - वो धुमक धुमक
ये धिरक धिरक - वो मटक मटक
एक और उदाहरण है अख्तर साब के जादुई शब्दों का-
"चांदी की थाल से लेके गुलाल
अब राधा से खेलेंगे होली मुरारी
राधा भी तटखट है-
पलटी वो झटपट है
मारी कन्हैया को है पिचकारी
अब राधा से खेलेंगे होली मुरारी
राधा भी तटखट है-
पलटी वो झटपट है
मारी कन्हैया को है पिचकारी
देखने वाले तो दंग हुये हैं
के होली में दोनों संग हुये हैं
तो राधा कान्हा इक संग हुये हैं
कौन है राधा कौन है कान्हा
कौन ये समझा कौन ये जाना"
आगे का कमाल पढिये -
"होली में जो सजनी से नैन लङे
थामी है कलाई कि बात बढे
तीर से जैसे मेरे मन में गढे
तेरी ये नजरिया जो मुझ पर पङे
जो ये रास रचे
जो ये धूम मचे
कोई कैसे बचे"
थामी है कलाई कि बात बढे
तीर से जैसे मेरे मन में गढे
तेरी ये नजरिया जो मुझ पर पङे
जो ये रास रचे
जो ये धूम मचे
कोई कैसे बचे"
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कृपया हिन्दी याहू समूह में सम्मलित हो।
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