एक महान लेखक या कहें कि एक आम आदमी के रोजमर्रा की जिन्दगी से हमेशा मुखातिब रहने वाले प्रेमचंद जी को फिर से याद कर रहे हैं हम--- उनके १२५वें जन्मदिन पर। मुझे लगता है कि उनकी कहानियाँ ऐसी कहानियाँ हैं जो एक सामान्य आदमी आसानी से समझ सकता है। बचपन से याद है कि हम कर्मभूमि, निर्मला देखा करते थे। छोटे थे हम लोग, फिर भी रात ८॰४० के समाचार के बाद इंतजार रहता था। वो भी क्या दिन थे। इसका श्रेय प्रेमचंद जी को ही जाता है। शायद सारे धारावाहिक ही मध्यम परिवारों पर केन्द्रित थे--- न कि आज की तरह, समझ नहीं आता कि आखिर आज के सारे कथित औपेरा किस के लिये बने हैं?
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