Sunday, July 17, 2005
एक सफ़र अमीन सयानी के साथ
यूं तो संगीत के साथ हमेशा बंधे रहने का मन करता है, आख़िर एक प्यार है, एहसास है, जो एक मजबूत डोर की तरह एक अजीब से बंधन से बाँधे रख़ता है। अगर सही कहूँ तो न जाने कब से एक ख्वाहिश है मन में - रेडियो पर कोई कार्यक्रम प्रस्तुत करने की, और मुझे यह कहने में बिल्कुल भी संकोच नहीं है कि यह ख्वाहिश "हूँ हूँ हूँ" एक ना भूलने वाले सफर के सिपहलेसलहार अमीन सयानी साहब के कारण आयी। अपूर्ण...
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