
यूं तो संगीत के साथ हमेशा बंधे रहने का मन करता है, आख़िर एक प्यार है, एहसास है, जो एक मजबूत डोर की तरह एक अजीब से बंधन से बाँधे रख़ता है। अगर सही कहूँ तो न जाने कब से एक ख्वाहिश है मन में - रेडियो पर कोई कार्यक्रम प्रस्तुत करने की, और मुझे यह कहने में बिल्कुल भी संकोच नहीं है कि यह ख्वाहिश "हूँ हूँ हूँ" एक ना भूलने वाले सफर के सिपहलेसलहार अमीन सयानी साहब के कारण आयी।
अपूर्ण...
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