संकेत साब,
शोध का लड्डू , जैसा आपने कहा, जो खाए वो भी पछताए और जो न खाए वो भी ः) लेकिन चलता है यार , किया कुछ भी नहीं किया जा सकता ।
जो कुछ ऊपर वाले ने लिख दिया है वो तो होना ही है । तो फिर मजे क्यों न किए जाए । मुझे लगता है कि कुछ भी हो जाए हमें मजे में ही रहना चाहिए । तभी जिन्दगी बढिया है । आपका क्या कहना है इस विषय पर?
अमित
Friday, July 22, 2005
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